आसमान को सम्भाल लो
हवाओं को तुम बाँध लो
धरती हिल उठी है आज
भ्रष्टाचारियों के खिलाफ
"देश देहल उठा " है आज
आतंक का है केवल राज
सरफरोसी ख़त्म हो गई
अब तो केवल भूख रह गई
आज कानून बन गया तमाशा
जिसका दिल जब चाहे देख ले
नारी की इज्जत ख़ाक हुई है
जिसका दिल जब चाहे लूट ले
ख़त्म हो गई आज इंसानियत
अब रह गई केवल दरिंदगी
लोगो का ईमान मिट गया
और मिट गई उसकी ताज़गी
इज्जत उसकी आज कोने में पड़ी
चाट रही है आज धुल और मिटटी
दिलों से दूर हो गई दूरियां उसकी
न कोई तार अब और न कोई चिठ्ठी
संजय कुमार गिरि
हवाओं को तुम बाँध लो
धरती हिल उठी है आज
भ्रष्टाचारियों के खिलाफ
"देश देहल उठा " है आज
आतंक का है केवल राज
सरफरोसी ख़त्म हो गई
अब तो केवल भूख रह गई
आज कानून बन गया तमाशा
जिसका दिल जब चाहे देख ले
नारी की इज्जत ख़ाक हुई है
जिसका दिल जब चाहे लूट ले
ख़त्म हो गई आज इंसानियत
अब रह गई केवल दरिंदगी
लोगो का ईमान मिट गया
और मिट गई उसकी ताज़गी
इज्जत उसकी आज कोने में पड़ी
चाट रही है आज धुल और मिटटी
दिलों से दूर हो गई दूरियां उसकी
न कोई तार अब और न कोई चिठ्ठी
संजय कुमार गिरि
एक टिप्पणी भेजें