नववर्ष के आते ही
प्रसन्न हो गए
उत्साहित हो गए हम,
उमंगे भरने लगे
स्वप्नों में तैरने लगे
कल्पनाओं के पंख उगे
आशाओं के दीप सजे,
खुशियों का आगोश
हमें अति भाया
प्रतिवर्ष आने वाला
बहार बनके आया,
गत वर्ष की भांति ही
बधाईयां लाया।
किन्तु-
हम तो वहीं हैं
जहां कल थे,
खड़े हैं आज भी वहीं पर
समय बदल गया
कैलेण्डर बदल गया,
किन्तु हम नहीं बदले;
क्या हमने नववर्ष को
बधाई पत्र भेजने का ही
साधन माना है
भेजकर उस पर ग्रीटिंग
कृतिश्री हो जाना है,
नही! कभी नहीं!!
मात्र बधाई भेजने से
नववर्ष नहीं हो सकता
हैपी न्यू ईयर कहने से खुशियाँ
नहीं आ सकतीं.
हमें भी नया बनना होगा
नया भाव जगाना होगा
समाज व देष में नूतन आयामों को
सजाना होगा,
उसमें व्याप्त विसंगतियों पर
अंकुश लगाना होगा।
प्रष्न चाहे जन का हो
समाज या राष्ट्र का,
सभी के प्रति हमें-
सेवा भाव से युक्त
समर्पण का भाव लाना होगा;
सेवा शब्द को सार्थक करना होगा
तभी निर्भीकता से कहने के
अधिकारी होंगे हम,
विश्व जनमानस के समक्ष
हैपी न्यू ईयर.


शशांक मिश्र भारती
हिन्दी सदन बड़ागांव शाहजहांपुर उ.प्र.-242401

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