सच और झूठ,
मैं दोनों बोलता हूं,
मुझे दोनों ही चाहिए।

दोनों ही पूरक है एक-दूजे के,
जैसे चीर देता है प्रकाश ,अंधेरे को 
पर सोते वक्त चाहिए होता है अंधकार तुम्हें,
जैसे हर वक्त अंधकार बुरा नहीं होता ,
बस वैसे हर वक़्त प्रकाश ठीक नही होता,
काल्पनिक होना, न होने के बराबर मान लेते हैं लोग,
ये गलत है,

क्योकि कल्पना, वास्तविकता का ही तो पूरक है,
जैसे सोचोगे नही, तो करोगे कैसे?
करोगे नही, तो होगा कैसे?
हुआ नही तो वास्तविकता भी नही।
अतः कल्पना ही आधार है वास्तविकता का।

प्रेम ही आधार है जीवन का।
जैसे काल्पनिक है मेरा प्रेम,
और वास्तविक हो , बस तुम।



-गुंजन गोस्वामी
 सिंहेश्वर, मधेपुरा 
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