राहूल एक प्यारा सा बच्चा था जो कक्षा 7 में पढ़ता था। एक दिन उसके टीचर ने बताया कि स्कूल में 1 माह बाद खेलकूद की प्रतियोगिता होने जा रही है और जो बच्चा दौड़ में प्रथम आयेगा उसे एक साइकिल ईनाम में मिलेगी। यह सुन कर राहूल खुश हो जाता है। उसका बहुत दिनों से मन था कि उसके पास भी एक साइकिल होती जिससे वह रोज समय पर स्कूल पहुँच पाता। असल में राहूल रोज पैदल ही अपने घर से स्कूल जाता था, ये दूरी ज्यादा होने के कारण कई बार वह थक जाता था तो रास्ते में सुस्ता लेता जिससे उसे स्कूल पहुँचने में देरी हो जाती थी और उसे टीचर से डांट खानी पड़ती। राहूल सोचने लगा कि अगर वह इस दौड़ प्रतियोगिता को जीत लेता है तो ईनाम में उसे साइकिल मिल जायेगी और वो रोज समय पर स्कूल आ सकता है। उसने मन ही मन ठान लिया कि यह दौड़ प्रतियोगिता जीतने के लिए वह बहुत मेहनत और अभ्यास करेगा। यह बात वह अपने मां और पिता जी को बताता है। वो भी राहूल का हौसला बढ़ाते हैं।

दूसरे दिन ही वह स्कूल पहुंचकर खेलकूद के सर से मिलता है। नसीम सर बच्चों के चहेते सर है क्योकि  वो बच्चों से दोस्तों जैसा व्यवहार करते हैं। राहूल को भी वो अच्छे लगते हैं। जब भी स्कूल में सर से मुलाकात होती तो वो उससे पढ़ाई के बारे में जरुर पूछते और हमेशा कहते ‘जो भी काम करना पूरी तरह से मन लगा कर करना। अधूरे मन से कोई भी काम सही तरीके से नही होता है।’ राहूल उनके पास जा कर अपनी इच्छा बताता है, उनसे मदद मांगता है और कहता है ‘सर अगर आप मुझे अभ्यास करायेगें तो मैं यह दौड़ जरुर जीत लूंगा, आप जैसा बोलेगें मैं वैसा करता जाऊंगा। मुझे अपने आप पर विश्वास है कि मैं यह प्रतियोगिता जीत लूंगा।’ नसीम सर उसके आत्मविश्वास को देख कर खुश होते हैं और कहते हैं ‘राहूल तुम्हें इस प्रतियोगिता को जीतने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। पूरी जान लगानी होगी।’ ‘सर मैं मेहनत करने के लिए तैयार हूँ।’ यह बोल कर राहूल निश्चय से भरा अपने घर की ओर चल पड़ा।

राहूल के प्रतियोगिता जीतने के सपने को पूरा करने के लिए उसके माता और पिता भी जुट जाते हैं। मां उसे रोज सुबह 5 बजे उठाने लगती हैं। राहूल के पिता रोज सुबह उठकर उसे खेल मैदान ले जाने लगते हैं। जहाँ वह नसीम सर के साथ जमकर दौड़ का अभ्यास करता और जब कभी थक कर चूर हो जाता तो उसे वह चमचमाती साइकिल दिखायी देने लगती जो प्रतियोगिता जीतने के बाद मिलने वाली है, तो उसकी थकान गायब हो जाती और फिर से वह जोश के साथ अभ्यास में जुट जाता।

देखते ही देखते वो दिन भी आ गया जिस दिन यह प्रतियोगिता होनी थी। राहूल को घबराहट हो रही थी। उसके पिता ने उसे घबराता देखकर कहा ‘बेटा तुमने बहुत मेहनत की है और मेहनत कभी जाया नही होती है। तुम अगर ये दौड़ जीत नही पाओगे तो भी निराश मत होना क्योंकि कम से कम तुमने प्रयास तो किया और यही सबसे बड़ी बात है, प्रयास करने का जज्बा ही जीवन भर तुम्हारे साथ रहेगा जो आगे बढ़ने में मदद करेगा। तुम बिना डरे केवल अपने गोल पर ध्यान दो। हम सब तुम्हारे साथ है।’ यह सुन राहूल फालतू की चिंता और डर छोड़ दौड़ पर ध्यान देता है।

थोड़ी ही देर में दौड़ प्रतियोगिता शुरु हो जाती है। राहूल अन्य बच्चों के साथ दौड़ लगाता है। आखिर इतने दिनों की कड़ी मेहनत रंग लाती है, राहूल दौड़ में प्रथम आता है। उसे चमचमाती साइकिल ईनाम में दी जाती है। सभी बहुत खुश हो जाते हैं। वह नसीम सर को धन्यवाद देता है और कहता है “सर अगर आप मुझे नही सिखाते तो ये प्रतियोगिता जीतना मुश्किल था”। सर कहते है “ये सब तुम्हारी मेहनत और लगन का नतीजा है” और उसे गले से लगा लेते हैं। अब राहुल रोज अपनी चमचमाती साइकिल से स्कूल जाने लगा है। 

उपासना बेहार,
भोपाल,मध्यप्रदेश
ई मेल –upasana2006@gmail.com
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