सच्चे वीर-सपूत,
बिना कमीशन पा न सके
वर्दी-कफ़न-ताबूत.
‘बेधड़क’ तुझे नमन करता है,
हे कमीशनखोर!
बलिहारी तेरे लालच की,
जिसका ओर न छोर.
कहीं
दर्द छिपा है,
कहीं
फर्ज छिपा है,
इस
बीत्ते भर मेरे सीने में,
लम्हे
क्या, अरसा बीत गया,
गम के
आंसू पीने में.
जनता बनाती है जिसे
पहरेदार खजाने का,
मिल जाता है मौका उसे,
इसे खा जाने का.
दिल रोता है बेधड़क,
खूँ के आंसू बहाता है,
लुटेरे की हर अदा पर,
जमाना मुस्कुराता है.
पी० बिहारी ‘बेधड़क’
कटाक्ष कुटीर, महाराजगंज
मधेपुरा
संपर्क: 9006772952
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