न जाने कितने
चौराहे, गली सड़कों, दीवारों में,
इन उंची पट्टिकाओं पर, टंगे बेशर्म नारों में,
विचारों में,विमर्शों में, भाषायी प्रहारों में
इन उंची पट्टिकाओं पर, टंगे बेशर्म नारों में,
विचारों में,विमर्शों में, भाषायी प्रहारों में
कहाँ तुम
खो गयी हिंदी !
कहीं गुम है तुम्हारी अस्मिता, इन संविधानो में,
कहीं हो राष्ट्र की भाषा, चुनावी प्रावधानों में.
किताबों के धुआंते अक्षरों में, सो गयी हिन्दी .
कहाँ तुम खो गयी हिन्दी?
विविध भाषा, विविध धर्म, ये अपना देश है पावन,
तुम्हारे लोक गीतों में, कभी बरसा था ये सावन.
मगर इन रैप गीतों में, अंग्रेजी के सलीकों में
विदेशी भाव-भाषा में कहीं गुम हो गयी हिन्दी.
कहाँ तुम खो गयी हिन्दी?
कभी कुरुक्षेत्र की पीड़ा में साझीदार थी हिंदी
कहीं पर उर्वशी के रूप का, श्रृंगार थी हिंदी ,
कभी मीरा कभी गिरधर, कभी रसखान है हिंदी,
बनी वह सूर की कृष्णा, सु-गीता ज्ञान है हिंदी,
हमारी संस्कृति से दूर कैसे हो गई हिंदी?
कहाँ तुम खो गयी हिन्दी?
समूचे विश्व की संपर्क भाषा मान है हिन्दी.
अजानी वीथिकाओं में कोई पहचान है हिन्दी.
है सींचा सृजन को जिसने, बनी वह पावनी गंगा.
अँधेरे रास्तों पर, मधुरतम सहगान है हिन्दी.
क्यों विकृत हो गयी है आज, माँ के भाल की बिंदी .
कहाँ तुम खो गयी हिन्दी?
पद्मा मिश्रा
जमशेदपुर
हिंदी दिवस पर शुभकामनाऐं ।