अरे जमाना जान लो तुम
अब मुझे पहचान लो तुम
मैं कटी पतंग नहीं
जो आसमां को
छू न पाऊं
मैं छोटी तरंग नहीं
जो किनारे तक भी
पहुँच न पाऊं
बनाऊं पहचान अपनी
यही सोच कर चल पड़ी हूँ
हर दुर्गम पथ तय करने
नारी हूँ मैं निकल पड़ी हूँ.
हां, नारी हूँ
निकल पड़ी हूँ.
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गुंजन
पार्वती सायंस कॉलेज, मधेपुरा.
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