गलत किया गाँधी ने,
आदत लगा दी लोगों को  
पीछे-पीछे चलने   की 
अब लड़ते ही नहीं लोग  
अपने  हिस्से की  भी  
छोटी-छोटी  लडाइयाँ  
तकते हैं आसमान  की ओर 
 बाट  जोहते हैं  एक आसमानी फ़रिश्ते की 
जो  आयगा नंगे बदन,
एक  लाठी पकडे 
झाँकेंगी  चश्मे के पीछे से  
उसकी पारखी नज़र 
पर भूल रहे हैं हम कि  
 उन्हें भी फेंक दिया था  
चलती रेल से  
सिरफिरी अंग्रेज़ी  हुकूमत  ने 
 गोडसे की गोली ने नहीं बख्शा  था  
शांति  के उस  दूत को  भी 
हमें  समझना  होगा कि  
ताकत गाँधी   में नहीं
उनके पीछे चल रहे हुजूम में  थी 
चल रहे थे जो
एक दूसरे  से उंगलियाँ फँसाये 
एक जिद्दी रास्ते  पर 
अमन और आज़ादी की तलाश में 
आहिस्ता-आहिस्ता 
अब रहने भी दो यारों 
चलो गढ़े   एक- एक गाँधी   
हम सब अपने भीतर 
 अगर करते हो गाँधी  से अब तक प्यार 
न  करो  एक अँधा इंतज़ार  
किसी  गाँधी  का  
अबके बार - अबके  बार.




कल्याणी कबीर
   जमशेदपुर

1 Response
  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!


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