जब बजते हैं सितार दर्द के,
 तभी  गुनगुनाती है ज़िन्दगी I
खिलती है तभी वो  
एक गुलाब के मानिंद,
जब घेरते हैं हालात  
नुकीले खार की तरह |
आफताब बनकर चमकने से  
पहले ये ज़िन्दगी  
हताशा की काली रात से  
गुजरती जरुर है I
यह जलती है,  तपती है  
धूप के झरने में हर रोज़ ​​
ताकि मुफलिसी में भी  
मुस्कुराती रहे किसी फ़क़ीर की तरह I
तभी तो..,
राब्ता रखना ज़िन्दगी के  
हर चेहरे से मगर  
मत झांकना कभी  
इसकी जादुई आँखों में I
मानकर इसे इस वक्त का  
सबसे बड़ा खुदा 
जी लेना अपनी साँसें  
ज़िन्दगी के इशारों पर  .......



कल्याणी कबीर, जमशेदपुर
2 Responses
  1. jindgi ke isharo par rachna behatar hai hardik badhai


  2. Unknown Says:

    सुदर कविता है


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