मानव ! 
अपनी तुच्छता का अब तो एहसास करो ।
कुदरत की चेतावनी का कुछ आभास करो ।
तोड़ा पहाड़ को तूने, जंगल को किया बर्बाद,
नदियों को करके कैद, ऐसे न विनाश करो ।

सब कुछ खा जाने को आतुर 
ये भूख तेरी है कैसी,
इसे नियंत्रित करने का सच्चा प्रयास करो ।
आँख खोल कर देख लो अपने कर्मों का परिणाम,
कुदरत लेती है हिसाब..हरदम विश्वास करो ।

ऊँची बेजान दीवारों में क्यों घुटने को बेबस हो,
प्रकृति संग हो जीवन वो राह तलाश करो ।
जो सबको लेकर साथ चले और रहे भविष्य सुरक्षित,
अगर बचाना है खुद को तो ऐसा विकास करो ।

मानव ! अपनी तुच्छता का अब तो एहसास करो ।
कुदरत की चेतावनी का कुछ आभास करो ।



रचना भारतीय, मधेपुरा.
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