मेरी  वफाओं का अब हिसाब दे दो तुम
कुछ अधूरे सवालों का जवाब दे दो तुम,
तुम्हारा यूँ छोड़ जाने का अंदाज ऐसा था
हमारी मुहब्बत का ये आगाज कैसा था,

ऐसे रास्ते पर लाकर अब छोड़ गये हो तुम
अपना कहकर यूँ मुंह मोड़ गये हो तुम,
अब वफाओं पर थोड़ा भी यकीन नहीं मेरा
दिल से खेलकर दिल यूँ तोड़ गये हो तुम,

जिन्दगी जीनी है, वो तो मैं जी लूँगा
तेरे दिए हुए सारे ग़मों को भी पी लूँगा,
पर सारी उम्र ये सोचता रह जाऊँगा
आखिर किस बात के लिए यूँ छोड़ गये हो तुम,

बीते हुए पलों को जब मैं याद करता हूँ
खुदा से अभी भी यही इक फरियाद करता हूँ,
जब तुम्हे मेरी सच्चाई का एहसास हो जाये
मेरी ख़ुशी की खातिर फिर लौट आना तुम.


कुन्दन मिश्रा,
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सन्तनगर सहरसा
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