इण्डिया गेट की ऊँचाई के नीचे
मैं माप रहा था अपनी ऊँचाई.
मायूशी में मचलते दम्पति को देखकर
दुबका सहमा एक कोने में बैठकर.
मैं निरख रहा था दूर बहुत दूर.....

लोग मानते हैं यहाँ होली इस कदर
पर सुगिया की आज किसने ली होगी खबर ?
मन की उड़ान जिसकी जाती नहीं
झोंपड़ी के ऊपर.
सानिया सोनिया अम्बानी से बेखबर.

मायूसी इर्ष्या का नहीं है प्रतिफलन,
पर है यहाँ दस्तक बाजारी वैश्वीकरण.
मुस्कुराते दम्पति ने हमसे पूछा-
भैया, मायूशी के आप क्यों हैं शिकार ?
दबी मुस्कान में, देहाती जुबान में
मैंने कहा उनसे- मैं हूँ बिहार.




डॉ० बी.एन. विवेका
कुलसचिव, बी.एन.मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा.
1 Response
  1. Unknown Says:

    A very Heart touching poem uncle. A very good work.


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