तुम 
अमरबेल की तरह
दाखिल हुई
हमारे जीवन में
और
निरंतर फैलती गयी
फैलती ही गयी
और
मैं
सिकुड़ता मुरझाता सूखता गया
और
अब
ठूंठ बनकर
खड़ा हूँ
लोग लगावन के लिए
ले जाते हैं
हमारी डालियों को
तोड़कर.


डॉ रमेश यादव
सहायक प्रोफ़ेसर
इग्नू, नई दिल्ली
2 Responses
  1. स्त्री पेड़ है और पुरुष अमरबेल
    कि
    स्त्री अमरबेल है और पेड़
    या
    दोनों ही एक-दूसरे अमरबेल
    पेड़ और अमरबेल के सहारे रमेश यादव
    इस कविता के माध्यम से जीवन का सम्पूर्ण दर्शन पेश करते हैं...

    शुभकामनाओं सहित !


  2. RAKESH DUBEY Says:

    एक बारिश की अमरबेल और दूसरा गर्मी की


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