फस्ले-गुल आने में थोड़ी देर है
दिल के जल जाने में थोड़ी देर है.
हमको हर चेहरे में वो चेहरा दिखे
वो तड़प आने में थोड़ी देर है.
उनकी आँखों में भी चिंगारी तो है
आग दहकाने में थोड़ी देर है.
चारागार से होके बेपर्दा जरा
जख्म दिखलाने में थोड़ी देर है.
गर खिजाँ आये तो उससे बोल दो
गुल के मुरझाने में थोड़ी देर है.
डॉ शान्ति यादव
प्राचार्या,
एसएनपीएम हाई स्कूल, मधेपुरा.
बेहद उम्दा रचना और कलात्मक विचार | आभार
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