यायावर मन रुकता कहाँ है !!! हर दिन नई प्रत्याशा में सृष्टि मंथन करने निकल पड़ता है . आँखें क्षितिज से आगे ढूंढती हैं उन निशानों को , जो मन की गहराईयों से उभरते हैं . झुरमुट से एक किरण ने बाहें पकड़ लीं और मैं आदतन किरणों के पृष्ठ पलटने लगी . सम्पूर्णता के क्रमिक प्रकाश के बीच - एक किरण सी रश्मि तारिका मुझे मिलीं http://www.catchmypost.com/Blogs/rashmi.html पर. सहज सोच की सहज अभिव्यक्ति, दृढ़ता के ओज से परिपूर्ण . बगावत, विरोध, परिवर्तन की मांग में भी एक सौम्यता ... सौम्यता ना हो तो विचारणीय नहीं रहते कथन !
आप इनको इनके ब्लॉग पर मेरे शब्दों के अनुरूप पा सकते हैं, उससे पहले उनके शब्दों में उन्हें जानिए -
     अपने बारे में क्या कहूँ? मुझे जब रश्मि दी ने अपने दृष्टिकोण से खुद का परिचय लिखने को कहा तो समझ नहीं पाई! मुझे तो इतना मालूम था कि....

दिल  में  कुछ  हसरतों  को समेटे  जिए जा रहे  थे
पलकों  में  कुछ  खवाब  सजाये  जिए  जा  रहे  थे
अपनी  ख्वाइशों का  भी  कुछ  अता पता  नहीं  था 
हम  खुद  में  सिमटे  ज़िन्दगी  जिए   जा  रहे  थे.
ख़ामोशी  से  बेरंग  हुई  उमंगों  को  दबाये  जा  रहे थे
चाहतों  के  टूटने  पर अश्कों  को  खुद   पिये  जा  रहे  थे,
न  मालूम  था  ज़िन्दगी  को कैसे  देखना  अब  मयस्सर  होगा
हम  खुद  से  ही  पूछते  खुद  ही  जवाब  दिए  जा  रहे  थे ...

  
         एक सीधी साधी गृहणी , जो अपनी छोटी सी बगिया को अपने फ़र्ज़, कर्तव्यों से सींचती हुई खुश  रहती है और कभी खाने की तारीफ या परिवार वालों से दो शब्द प्यार के  भी सुनती है तो अपने आत्मसम्मान के लिए अपना इजाफा समझती है ! लेकिन अब ....  ''हाँ , आजकल आसमान में उड़ने लगी हूँ ! जैसे किसी ने मेरे पंखो को उड़ान दे दी हो !बताऊँ क्यों? दरअसल , अपने ख्यालों को जो ताबीर दी थी , कुछ करने की चाह जो दिल में बरसों से ज़िम्मेवारियों और फर्जो की किसी गहरी खाई में दबी पड़ी थी अब उन्हें निकलने का वक़्त मिला तो कुछ अपनों और  दोस्तों की प्रेरणा रुपी रस्सी से निकाला तो जल रुपी भावों की मटकी भरी हुई पाई !उस मटकी से छलकते जल की शीतलता का एहसास ही जैसे प्यासे को उस जल की उपयोगिता जतलाता है वैसे ही मेरे भावों को भी शब्दों की उपयोगिता का आभास हुआ !तब से ये भावरूपी मटकी अब भरती जा रही है !अब शायद ये कभी खाली न हो !''  ये एहसास मुझे रश्मि दीदी ने करवाया कि अपनी लेखनी में से चंद शब्दों का लेख द्वारा  इज़हार उनकी पुस्तक के लिए करू !यह सुनकर तो मेरी ख़ुशी का पारावार न था !मानो बहुत कुछ पा लिया हो मैंने !
        कभी सोचती हूँ ,  अपने माता पिता और भाई बहनों में एक भोली छवि वाली लड़की ,गर्ल्स कॉलेज ,(हिसार हरियाणा ) में भी अपने आप में सिमटी रहने वाली ,अपने शर्मीले स्वाभाव के साथ ही  बी.ऐ पूरी होते ही  केवल इन्ही गुणों के साथ ससुराल '' सहारनपुर'' आ गई और खो गई अपने परिवार में !उस वक़्त देवरों ,ननदों में ही अपना दोस्त मिला  और प्यारे पति के साथ ज़िन्दगी बिताना ही मात्र एक पूर्णता का एहसास था और इसे बेटी और एक बेटे के जनम ने चार चाँद लगा दिया !मायके में पत्र पत्रिकाओं , कहानियां उपन्यास पढने का शौक था तो ससुराल में एक अखबार की भी कमी खलती !किसी को शौक नहीं था इन सब का ! मेरे शौक ज़िम्मेवारियों में दब गए और मुझे पता भी न चला !पर जैसे समय ने ही करवट ली और हम सहारनपुर (उ.प) से सूरत(गुजरात) में आ गए !उस वक़्त कम्पुटर का 'स्विफ्ट ज्योति ' का बेसिक कोर्स महिलाओं के लिए शुरू हुआ था जो मेरी भी  करने की चाह थी परन्तु  किन्ही कारन वश मुझे घर में मना कर दिया गया !अपना खाली समय उस वक़्त केवल  बच्चो की स्कूल मैगज़ीन में बच्चो के लिए कुछ  न कुछ लिख कर या उनके चार्ट्स बना कर अपने लिखने की हसरत पूरी कर लेती !धीरे धीरे ये एहसास हुआ कि मन बहुत कुछ लिखने को मचलता है !सोचती थी ,कि आखिर अपने भावों को शब्दों में पिरोने की ललक क्यों ? कॉलेज में हिंदी को (ऐच्छिक और वैकल्पिक) विषय चुनना और उस में उच्चतम नंबर लाना ही लिखने का कारण नहीं हो सकता !यद्यपि ये कारक सहयोगी अवश्य हो सकता है लेखनी में ! फिर ये लिखने की अनुभूति हुई कैसे ?... मन स्वत: ही इन 'भावों की जननी अपनी माँ '' की तरफ जाने लगा जिन्होंने अपनी लिखने की कला को ईश्वर भक्ति को समर्पित अपने स्वरचित और स्व लिखित भजनों द्वारा किया और मेरे मानस पटल पर भी अंकित कर दिया! उनका  ईश्वर प्रेम प्रतिदिन एक नया भजन बन कर दृश्यमान और गुंजायमान होता !कुछ ऐसे ...
                  '' धूल बनके तेरे चरणों से लिपटना अच्छा लगता है
                     साँसों कि लय से तझे सिमरना  अच्छा लगता है !''
  घर के कार्यो में व्यस्त होने के बावजूद माँ ने अब तक खुद के ही २०० भजन बना लिए और एक बार १०८ भजनों की माला हमारे गुरुओं के चरणों में समर्पितकी  !उनकी इस सात्विक सोच का हमारे जीवन पर भी प्रभाव रहा !
             ''मेरी आँखें तलाशती रहती हैं हर इंसान में हर रूप तेरा
              सारी दुनिया 'रब' लगती है  यह हाल मेरा
               तेरा सिमरन कर लेती हैं मेरी साँसे चलते चलते
               मुझे प्रेम हो गया है तुझसे तेरे चर्चे करते करते ...!''

 उनका मानना था कि.मुश्किलों का घबराकर नहीं ,उनका समाधान ढूँढ़ कर निवारण करो और फिर भी कोई रास्ता न सूझे तो बजाये चिंता करने के वो वक़्त प्रभु सिमरन में लगा दो और उस मालिक पर छोड़ दो ''
 सच पूछिये तो इन दो वाक्यों का मुझ पर हमेशा प्रभाव रहा है !फलस्वरूप मैंने परिस्थितियों से हार न मानते हुए अपने व्यस्त पलों से कुछ पल अपने लिए निकाल कर अपनी लेखनी को देने प्रारम्भ किये !पहली बार अपने स्कूल के विद्यार्थियों और अध्यापिकाओं को समर्पित करते हुए एक कविता लिखी जब शादी के काफी वर्षो बाद अपने विद्यार्थी काल की सखी को अपने ही शहर में पाया तो उस ख़ुशी को भी शब्द दे दिए ,https://www.facebook.com/notes/rashmi-tarika/campus-school-ki-yaadein/207428335935860 जो बेहद पसंद की  गई !सबने उत्साहित किया तो लिखती चली गई !अपने मन की  ख्वाइशों को http://www.catchmypost.com/kavita/2011-10-02-22-02-23.htmlशब्दों का जामा  पहनाया और उन्हें कविता में ढालकर ,''catchmypost ''पर प्रतियोगिता हेतु भेजा !उसका चयनित होना ही एक बड़ी उपलब्धि थी मेरे लिए ! लेकिन इसका श्रय मैं अपनी दीदी शील निगम जी को देती हूँ ! इस तरह मैं लेखनी के अथाह सागर में धीरे धीरे पांव जमाती हुई उतर पड़ी !ये एहसास हुआ कि.
बहुत गहरा सागर है यह जिसमें ज्ञान के सीप भरे पड़े हैं !मेरी लेखनी का रूख कहानियों ,कविताओं ,लेख,शाएरी और भजन की  तरफ भी है जैसे ....
           '' कागज़ में जो लिखा नाम तेरा,वो लगे मुझे तस्वीर तेरी
             वो पूजा मेरी हो जाए वो बन जाए तकदीर मेरी
             यही प्रेम और भक्ति यही ,कुछ और मुझे नहीं आता
              जब जहाँ भी तेरा ख्याल करू सर श्रधा से झुक जाता ...!''

                                                             कभी कभी लौंग ड्राइव पर जाते हुए ,  बारिश की रिमझिम और चेहरे पर पड़ती बुँदे और हमसफ़र का साथ ,रास्ते में  कहीं गाडी रोक कर चाय की चुस्कियों का या गरम गरम भुट्टे का आनंद मेरे मन में एक तरंग पैदा कर देते हैं और इन्ही रूमानियत भरे पलों में एक कविता का आगाज़ हो जाता है ! कभी कभी ट्रेन  में बैठे बैठे अपने  मन पसंद लेखको की कृत्तियों को पड़ना एक सुखद एहसास देता है !
उतर जाती हूँ तब उनके भावों की गहराई के समुन्द्र में और कल्पनाशील होकर मंथन करने लगते हैं विचार उन पात्रों के साथ !  कभी कभी छोटी छोटी बातें भी बड़ी ख़ुशी दे जाती हैं !कभी लिख कर खुद ही खुश हो जाया करती थी  पर आज इन छोटी खुशियों में परिवार का सहयोग और प्यार नज़र आता है जब पति मुझे ''मेरी लेखिका पत्नी ''कहकर पुकारते हैं और बच्चे ,''keep it mom '' कहकर उत्साह बढ़ाते हैं!यही मेरी  सबसे बड़ी उपलब्धि है !
                                                                 अंत में इतना ही कहूँगी कि २ बच्चो और पति के साथ अपने छोटे से परिवार के साथ खुशियों  के पल समेटते हुए कुछ पल निकालकर अपनी कलम से चंद शब्दों को कभी कविताओं ,कभी कहानिओं या लेखों में बाँध देती हूँ !भावनाओं को,अपने आसपास हो रही हर गतिविधि को अगर शब्दों में ढाल कर उचित तरीके से एक अच्छे सन्देश के साथ किसी भी आम इंसान तक पहुंचा सकू तो मुझे ख़ुशी होगी !इसी कोशिश के साथ अब तक अपनी कहानिया, कवितायेँ और लेख आदि ई पत्रिका ..लेखनी,प्रवासी  दुनिया ,रचनाकार,म्हारा हरयाणा ,,मैथिलिप्रवाहिका पत्रिका जो छतीसगढ़ से  छपती है, में भेज चुकी हूँ और छपती रही हैं !अभी कुछ दिन पूर्व ही मेरे कहानी "आत्मसम्मान'' राष्ट्रीय समाचार पत्र ''राजस्थान पत्रिका" में प्रकशित हुई जिसका लिंक है http://epaper.patrika.com/63713/Indore-Patrika/21-10-2012#page/37/2
बाकि सब रचनायें मेरे ब्लॉग http://www.catchmypost.com/rashmi/
पर आप पढ़ सकते हैं  !
               मित्रो , आप की प्रतिक्रिया ही मेरी अग्रिम रचना के लिए शुभकामना है !
                                                इसलिए इंतज़ार में ...
                                                                                     आपकी दोस्त ...रश्मि तरीका
(प्रस्तुति: रश्मि प्रभा)
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