आज
गाँव के बिछुड़े संगी-साथी
पगडंडियों से मुलाकात हुई
औचक कुछ ख्वाहिशें
भूरे-भूरे मिटटी की तरह गिर पड़े
जो जिल्द में दबे जख्म--दीवार थे
एक चटकन सा लगा कि
कागज़ी भौगोलिक विकास के बाद
प्रत्यंचा पर चढ़े तीर की भांति
हृदय में भाव खिल उठे
फूल बनकर नहीं
बल्कि तीक्ष्ण सवाल की तरह
शब्द नाचते हुए कह उठे
हे देश !
गौर से सुनों...
तुम्हारे सपने
कितने झूठे, सजीले और रपटीले हैं
हमें हमारे नाम से ही छलते हैं
फिर भूमंडलीकरण, बाज़ारवाद
और विस्तारवाद के राग अलापते हुए
अतीत के चौखट पर पटक आते हैं
एक पिता
हिसाब-किताब की डायरी के पन्ने उलटे-पुलटते
बरबस कुछ फू-फां करते हुए
कहते हैं
हे बेटी...!
आधुनिक संसाधनों से लैस
तू आज भी अपने
माँ के कलेजे का टुकड़ा 
पिता के आँख की किरकिरी 
भाई के कलाई की शोभा 
भाभी के हृदय की रानी 
घूमे घर-आँगन चहकें चिड़ियाँ रानी 
घोघो-पानी खेले
बोले मीठी बानी की तरह ही है
मगर तेरे साथ
कई और झंझावातों तेरे संघाती हैं
जब से तू
बनी बहुरिया 
भूल गयी बचपन की सारी नादानी 
निकट पड़ोसी दोषी 
फिर भी खाए तू ही गाली 
बेटी से हो गयी
लाठी टेगती बुढ़िया 
बन गयी दादी, नानी, काकी और कुबड़ी की कहानी 
जहाँ से हुक्के के गुडगुड से कुडकुड करती 
खांसे दिन-रात
रहे दुनिया से अनजानी
फिर भी उसके
इज्ज़त, सम्मान के लिए जागे दुनिया सारी
तब पर भी
बदल न सके रीत के गीत पुरानी
जिसे लिखे
सदग्रन्थों के सुंदर बाणी
परम्परा, संस्कृति और संस्कार के नाम पर
नित्य-प्रति पड़े
कोटि-कोटि गाली
कभी कुलटा
कभी छिनाल
तो कभी बहिला
कहकर घसीटे दुनिया सारी
बात बनावे बड़ी-बड़ी
लेकिन काम करे
युगों-युगों से लादी गयी
नीतियों के आड़ में
लिखे दकियानूसी रवायतों के किस्सागोई के साथ
बुने चादर झीनी-झीनी



 डॉ० सुनीता

सहायक प्रोफ़ेसर, हंसराज कॉलेज, नई दिल्ली.

9 Responses
  1. Unknown Says:

    thnx Dr.sunita mam fr dis...
    really itz d bst one




  2. dastkhat Says:

    घर,आंगन,पगडंडियों,पिता-पुत्री संवाद और परिवेश को अभिव्यक्त करती रचना...!


  3. dastkhat Says:

    घर,आंगन,पगडंडियों,पिता-पुत्री संवाद और परिवेश को अभिव्यक्त करती रचना...


  4. हर शब्द की अपनी पहचान बना दी आपने बहुत सुन्दर


    मेरी नई रचना

    प्रेमविरह

    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ


  5. हर शब्द की अपनी पहचान बना दी आपने बहुत सुन्दर


    मेरी नई रचना

    प्रेमविरह

    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ


  6. सत्य को उकेरा है



  7. अच्छी कविता ---पर प्रोफ साहिबा ...हिन्दी की वर्तनी की कई अशुद्धियां हैं... जैसे ..

    संघी-साथी = संगी-साथी ....


एक टिप्पणी भेजें