बादाम खा रही है,’
कभी रिक्शा/कभी टमटम
कभी रथ स्वचालित/अश्वकर्षित
पर आ रही हैं,
अधखुले-खुले/खिले अंग
पीले पारदर्शी परिधान/तंग
लहरा रही हैं,
कभी गर्दन सुराहीदार
कभी केश-काले/मतवाले
कभी हाथ/हौले-हौले
हिला रही हैं
कभी मंद मारूत/मलय-सी मुस्कान
कभी मस्त-मस्त/विश्व सुन्दरी उफान
खिल-खिला रही है,
और सबको प्यार से
वासंती-यौवन का
जीवंत जीवन का
पाठ पढ़ा रही है
यह देखो/वह देखो
मादाम जा रही है.
मादाम आ रही है.
डॉ० रामलखन सिंह यादव
प्रथम अपर जिला जज,
मधेपुरा (बिहार)
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