आके पहलुओं में
शाम रंगीन कब करोगे..?
सूरज की पहली किरण से
रौशन मुझे कब करोगे..?
जाड़े की ठंढी हवा को
तेज धूप में कब बदलोगे..?
सुनाई देती है तेरे दिल की धडकन
मेरी धडकन कब सुनोगे..?
तेरे सपने हैं मेरी आँखों में
ये सपने सच कब करोगे..?
कदम पड़ेंगे तुम्हारे जहाँ
होगी मेरी मंजिल वहां..
जिंदगी के इस कठिन सफर में
हमसफ़र मेरे कब बनोगे..?
“आशु” तुम कब आओगे..???
-श्रुति भारती
मधेपुरा.
behtreen rachna.....