सोनल रस्तोगी कहते कुछ सरसराते शब्द मेरा हाथ पकड़ लेते हैं - 'जब भी खुद को शायरा, लेखिका और बुद्धिजीवी समझती हूँ नींद खुल जाती है' और मैं हंसकर कहती हूँ -' और तब तुम कलम उठा लेती हो, है न !'
कभी झरना , कभी बादल , कभी बारिश की बूंदें , कभी प्यार का अलाव .... क्या नहीं लगती सोनल . चेहरे पर एक शरारत जो कहती है - ' ज़िन्दगी तो यूँ हीं बड़ी गंभीर हुआ करती है, अभी ज़रा मुस्कुरा लेते है ... बड़ी फुर्सत से धूप निकली है ! '
इनका ब्लॉग है - http://sonal-rastogi.blogspot.com/  जहाँ इनकी सादगी, शरारत, और गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है . बिना मिले समझने का इससे बेहतर जरिया और क्या होगा , और मेरी कलम से अपनी कलम की आवाज़ मिलाकर तो इस जानकारी को और सुगम बना दिया है .... कहने को तो है यूँ बहुत सी बातें , पर अभी इतना ही सही ....

चिट सामने है सोनल जी की फिर देर क्यूँ -
अपने परिचय की चिट धीरे से आप तक बढ़ा रही हूँ बिलकुल वैसे ही जसे कोई चुपके से ख़त दरवाजे के नीचे से बढ़ा जाता है , फर्रुखाबाद में जन्मी परिवार की पहली बेटी लाड ढेर सारा ,ढेर सारे रिश्तों से घिरी,बेहद बातूनी ,हद दर्जे की शैतान माँ कहती है जब तक पढ़ना नहीं आया था तबतक ,फिर किताबों में ऐसी डूबी की आज तक नशा कायम है ,लिखने की शुरुवात स्कूल में लोकगीत की तुकबन्दिया भिडाने से शुरू हुई ,फिर गांधी जयंती ,रक्तदान ,नेत्रदान ,प्रदूषण हर सामाजिक विषय पर लिखा नाटक ,एकांकी सब लिखवाया मेरी अध्यापिकाओ ने और माँ सरस्वती के आशीष नें ही आम से ख़ास महसूस करवाया , इसी दौर में बालहंस में अपनी कहानी परिचय के साथ भेजी जो बाल प्रतिभा विशेषांक में छपी,फिर क्या था खाली लिफाफे और टिकेट मिल गए खूब लिखो और भेजो मनीआर्डर की रसीदे आज तक सहेजी है अपर किताबें ना सहेज पाई ,अनमोल है ना .....
हर बार प्रोत्साहन मिला,वाद विवाद प्रतियोगिता ,नृत्य हर विधा का आनंद लिया ,खेलों में फिसड्डी थी हूँ और रहूंगी ,समय के साथ डायरी भरती गई 12th तक हर विषय पर लिखा ..लोगों के प्रेम पत्रों के लिए शायरी भी लिखी,समय बदला परिस्थितिया बदली पढ़ाई के बोझ के तले कविता कहानियाँ सब खो गई बहित बड़ा शून्य आ गया लेखन में,आगे बढना था ढेर सारी पढ़ाई, होने वाले जीवन साथी से जब मिली तो उनका मन भी एक कविता ने चुराया
"आज दिल ने चाहा बहुत अपना भी हमसफ़र होता
जिससे कहते हालात दिल के जिसके काँधे पर अपना सर होता ..... (बाकी फिर कभी )
"
भावनाएं उमड़ी और दिल से फिर फूट पड़ी कविता कहानिया, फर्रुखाबाद ..लखनऊ...मेरठ ...गुडगाँव . शहर बड़े होते गए और मैं इनके साथ बदलती गई, नया रिश्ता , नया शहर और ढेर सारा आत्मविश्वास और सहयोग. बस एक देसीपन आज तक वैसा ही है .. . ब्लॉग्गिंग से परिचय मेरे देवर डा. अंकुर ने करवाया http://gubaar-e-dil.blogspot.com/ तब से जो पंख लगे आज तक उड़ रही हूँ, एक दिन रविश जी ने मेरे ब्लॉग को अपने कॉलम में जगह क्या दी तब से मेरी दुनिया बहुत बड़ी हो गई और प्यारी भी , रचनाओ को पाठक मिले और मुझे पढने के लिए ढेर सारी सामग्री, सच में यहाँ मैं सिर्फ मैं हूँ बेहद सुकून मिलता है.
अभी तो घुटुनो के बल हूँ ,धीरे-धीरे चलूंगी पर दौड़ना नहीं है मुझे, ज़िन्दगी स्लो मोशन में ही भाती है सब देखना है मुझे .
क्या पता किसी दिन ब्लॉग से अखबार और अखबार से किताब की शक्ल ले लूँ ...

--प्रस्तुति: रश्मि प्रभा, पटना.
(http://sameekshaamerikalamse.blogspot.in/)
4 Responses



  1. बहुत प्यारी है सोनल. धीरे चलो या उड़ो कोई समस्या नहीं पर पाँव जमीन पर रहें, सफलता तुम्हारे साथ है ही:).
    ढेरों शुभकामनाएं.


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