दया आती है मुझे तुम पर,
तुम्हारी सोच पर,
तुम्हारे धर्म पर,
ऐसे रीति रिवाज़ों पर।
दया आती है मुझे
तुम्हारे दिखावेपन पर,
ओछे आदर्शों पर,
झूठे शान पर।
अपने स्वार्थ के लिए
स्त्री का सम्मान
क्यो करते हो दिखावे के लिए
स्त्री का सम्मान?

तुम्हे कोई हक़ नही
 मेरी खुशी मे शामिल होने का
क्योंकि मेरे दर्द मे तुम भागीदार नहीं।
तुम्हे कोई हक़ नहीं मुझे छूने का
क्योंकि मेरी मुश्किल घड़ी को 'उन दिनों'
कहने का तुम्हे कोई अधिकार नहीं।
क्यो शर्माएं हम इसके होने से
 ये हमारा कसूर नहीं।
कुदरत ने बनाया है ये नियम,
इसे गंदगी बोल,
तुम भी बेकसूर  नहीं।
क्यों बीमार कहते हो हमें,
जब तुम खुद मानसिक बीमार हो।
क्यों रोकते हो हमें पूजा करने से,
रसोई मे जाने से य कुछ भी करने से,
बस तुम्ही इसके कसूरवार हो।

सिर्फ टीवी पर सोच बदलने से कुछ न होगा,
अपने अंदर की गंदगी साफ करो।
क्यों छिपाकर खरीदती हूँ मैं सामान अपने
कभी सोचा है तुमने,
मुझे शर्म नहीं बस भय है तुम्हारी हैवानियत का
ज़रा कुछ तो खुद मे बदलाव करो।
तुम्हारा नज़रिया, तुम्हारी टिप्पणियाँ,
मुझे झझकोरते नहीं,
ये तो तुम्हारे संस्कार हैं।

मैं तो आज़ाद पंछी हूँ, उडूंगी,
उड़ती रहूंगी, यही मेरी पहचान है।
एक वीर ने कहा था- "तुम मुझे खून दो
मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा"|
मैंने तो 12 साल की उम्र से खून दिया है,
पर फिर भी क्यों मैं आज़ाद नहीं।
तक़लीफ़ हमें होती है,
नियम तुम क्यों बनाओगे।
सहन हमे करना है तो
अंदाज़ा तुम क्यों लगाओगे।
हमे ज़रूरत नहीं तुम्हारे अहसानों की,
अपना मुकाम हम खुद पाएंगे।
बस रुकावट मत बनो हमारे रास्ते की
अपनी राह हम खुद बनाएंगे।
अपनी राह हम खुद बनाएंगे।

 

 गुंजन गोस्वामी
 सिंहेश्वर, मधेपुरा


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