इल्म है खूबसूरती
का हमे भी,
तभी तो अक़ीदत से
झुक गये है हम,
तू क्या है सिर्फ़
तुमको नहीं मालूम चाँद
एक यही बात,
फिर से कह गये है हम,
पड़े जो नज़र इनायत की
तेरी मुझपर कभी
एक यही तसव्वुर लिए
हर घड़ी बढ़ रहे है हम
पहुँच ही जायेंगे किसी दिन
तेरी दहलीज तक, जो तू न आई तो,
एक यही आरज़ू लिए अब जी रहे है हम !!
 
अजय ....
1 Response
  1. Unknown Says:

    सच में भैया बहुत ही खुबसूरत रचना है।


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