तुम ना कहती रही
पर सिर्फ होठों से ....
तुम्हारी ऑखें
कहती रही कुछ और ही.
मैं जानता था
तुम्हारी मजबूरियों को.
और तुम्हें भी था मालूम
नहीं निभा सकोगे साथ मेरा.
फिर भी प्यार की उन राहों में
निकल चुके थे दूर हम.
पर शायद दिल के हाथों
थे मजबूर हम.
तुम लौट गए वापस
मुझे अकेला छोड़कर
.
और मैं करता रहा इंतजार
वहीं....
जहाँ छोड़ा था तुमने मुझे.
आज भी चुपचाप बैठा हूँ
उसी जगह
एक आहट के इंतजार में.
आहट....
जो हो तुम्हारे नाजुक
क़दमों की.
राकेश सिंह (मधेपुरा, इंडिया)
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