फिर से आने लगी है.
कोपलों मे मुस्कुराहट
फिर से छाने लगी है.
प्रकृति, दिल को
छूने को पास आने लगी है.
हमे जाने किसकी
चाहत फिर सताने लगी.
सोंचता था झटक दूंगा
इस बुरे ख्याल को.
सोंचता था मोड़ दूंगा
समय के इस पल को.
सोच में मैं सिहरता था
जित के ख्याल से
और ये मादक विरह
अग्नि फिर जलने लगी है.
हमे जाने किसकी चाहत फिर सताने लगी है.
लोग कहते हैं, ये चाहत खुदा का वरदान है.
प्यार का अहसास दिल के लिए, एक सम्मान है
प्यार क्या है, ये तो अपने जिगर का एक रोग है.
और, इस शरद से, दिल ने आशाए जगाने लगी है.
हमें जाने किसकी चाहत फिर सताने लगी है.
आदित्य सिन्हा, मुंबई
सुंदर ।