मै कोई ठूंठ दरख़्त नहीं हूँ
जिसमें ना हो जीवन की धडकन.
वो टूटी शाख भी नहीं हूँ
जिस पे ना चहचहाना
चाहती हो बुलबुलें.
मैं पतझड़ का वो वृक्ष हूँ
जहाँ आशाओं, कामनाओं की
कोंपलें जन्म लेती रहती है.
प्यार के सावन को
तरसती रहती है.
मुझे गुजरा वक़्त मत समझो
जो लौट कर आता नहीं.
ना ही वो पत्थर समझो
जिसे आवाजों के तीर बिंधते नहीं.
मै बंजर नहीं
जहाँ आशाओं की खेती होती नहीं है.
मुझे लाश मत समझो
मेरी सांसे अभी भी चलती रहती है...
डा० शेफालिका वर्मा, नई दिल्ली
जिसमें ना हो जीवन की धडकन.
वो टूटी शाख भी नहीं हूँ
जिस पे ना चहचहाना
चाहती हो बुलबुलें.
मैं पतझड़ का वो वृक्ष हूँ
जहाँ आशाओं, कामनाओं की
कोंपलें जन्म लेती रहती है.
प्यार के सावन को
तरसती रहती है.
मुझे गुजरा वक़्त मत समझो
जो लौट कर आता नहीं.
ना ही वो पत्थर समझो
जिसे आवाजों के तीर बिंधते नहीं.
मै बंजर नहीं
जहाँ आशाओं की खेती होती नहीं है.
मुझे लाश मत समझो
मेरी सांसे अभी भी चलती रहती है...
डा० शेफालिका वर्मा, नई दिल्ली
बहुत सुन्दर और भावुक रचना ----
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर ----
आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------