मैं अभ्यस्त हूँ .....
कंटक भरी राहों में चलने का,
आमावास्य की रात में चमक देखने का,
रंगभरी हरी-भरी वादियों में,
विरह गीत गाने का,
मैं अभ्यस्त हूँ .........
तपती रेत में, नंगे पाँव चलने का,
बारह महीने शिशिर ऋतु में,
ठिठुरने का,
आंशुओं को, पलकों में रोकने का,
प्रेम का सरोवर जीवन में होकर भी,
प्यासा रहने का,
फिर भी!
तृप्त है मन,
जिजीविषा की इन कटंकी राहों पर,
लेकिन प्रिय?
तूने क्यों उठाया बीड़ा,
मेरे संग इस राह में सहचर्य निभाने का,
क्या ये मेरी प्रीत का कर्ज है,
या..............
जिगर पर प्रेम का मर्ज है,
चलो जो भी हो,
तेरे सानिंध्य ने मेरी अभस्त अडिगता,
को और अडिग बना दिया



बलबीर राणा "अडिग"
चमोली उत्तराखंड
वर्तमान भारतीय थल सेना गढ़वाल राईफल