यह एक अनोखी, अटूट प्रेम कहानी है।
शायद ही यह आपने कभी सुनी हो।
करोडों साल पहले हुआ था,
धरा का निर्माण,
बने चांद सितारे,
बना आसमान,
मौसम बने अनेक,
बदले धरा ने भी रुप अनेक,
गर्मी मे झुलसती है वह,
बारिश मे होती हैं छटा निराली,
मानो किसी ने ओढी चुनर धानी,
धरा हैं माँ, अति सहनशील,
कर लेती अपने आंचल में,
हर जीव को शामिल,
दूर गगन में बैठा ध्रुव,
देखा करता था,
धरा की हर चितवन,
धरा की नित नयी, मनोहारी चितवन
पर मोहित था वह,
परंतु, दोनो ही ब्रंह्माड के नियमो में
बंधे थे,
ध्रुव ने उत्तर दिशा का स्थान पाया था बडे तप से,
उस पर वह अडिग था,
दोनो के बीच थे अंतरिक्ष के फ़ासले,
फ़िर एक दिन दोनो के बीच संवाद कुछ यो हुआ,
ध्रुव--तुम हो धरा, मैं आसमान का तारा,
धरा--हाँ, नही होगा कभी मिलन हमारा,
ध्रुव--प्रिया हो तुम मेरी, बोलो भेट तुम्हे क्या दु?
धरा तो माँ, और हर माँ की भाँति उसने
अपने बच्चो का हित ही सोचा,
ध्रुव ने धरा के मनोभावो को पहचाना,
वचन दिया उसने धरा को,
"तुम्हारे बच्चो को आजन्म दिशाज्ञान कराऊंगा,"
समुद्री नाविक, मुसाफ़िर,
अंधेरी रातो में जब रास्ता भटक जायेंगे,
उत्तर दिशा में मैं उन्हे नजर आऊगा,
उत्तर दिशा का ज्ञान होने पर,
वे अपनी आगे की यात्रा निर्धारित करेंगे,
तभी से उत्तर दिशा का चमकता ध्रुव तारा,
धरा को दिया हुआ अपना वचन निभा रहा है,
उसका धरा के प्रति यह अटूट प्रेम,
हमेशा मानव कल्याण के लिये रहेगा
यह प्रेम एक मिसाल है, कि
"प्रेम देने का नाम होता है, लेने का नहीं"


निशा मोटघरे,
औरंगाबाद, महाराष्ट्र
3 Responses
  1. Bahutsundar prayas. Vigyan aur adhyatm to sanyuktroop me prastut karne aur janmanas ka dhyan aakrisht karne ke liye. Abhar ...


  2. पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
    कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
    ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (8) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !


  3. सदा Says:

    तभी से उत्तर दिशा का चमकता ध्रुव तारा,
    धरा को दिया हुआ अपना वचन निभा रहा है,
    उसका धरा के प्रति यह अटूट प्रेम,
    हमेशा मानव कल्याण के लिये रहेगा
    यह प्रेम एक मिसाल है, कि
    "प्रेम देने का नाम होता है, लेने का नहीं"

    सार्थकता लिये सशक्‍त अभिव्‍यक्ति .....


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