हमने 
कहा 
साम्राज्यवाद मुर्दाबाद 
उसने कहा साम्राज्यवाद जिंदाबाद 
हमने 
पूछा क्यों ? 
उसने कहा 
क्योंकि मेरे बाप-दादों ने साम्राज्यवाद की ताजिंदगी चाकरी की... 
मैं उसी नर्सरी का बीज हूँ... 
हमने 
कहा 
पूँजीवाद मुर्दाबाद 
उसने 
कहा 
पूँजीवाद ज़िन्दाबाद 
हमने पूछा क्यों ? 
उसने 
कहा 
मैं पूँजीवाद का पोषक हूँ 
मुर्दाबाद कैसे बोलूँ... 
हमने 
कहा 
सामंतवाद मुर्दाबाद 
उसने 
कहा 
सामंतवाद ज़िंदाबाद 
हमने पूछा क्यों ...? 
उसने 
कहा 
मैं सामंतवाद के गर्भ से पैदा हुआ हूँ 
मुर्दाबाद कैसे बोलूँ...? 
हमने कहा पूँजीवादी लोकतंत्र मुर्दाबाद 
उसने 
कहा .....ज़िंदाबाद 
हमने 
पूछा क्यों ...? 
उसने 
कहा 
मेरी सारी पूँजी, 
इसी लोकतंत्र से पैदा हुई है ... 
हमने 
कहा 
भ्रष्टाचार मुर्दाबाद... 
उसने 
कहा 
भ्रष्टाचार ज़िंदाबाद 
हमने 
पूछा क्यों ? 
उसने 
कहा 
मैं भ्रष्टटन का,भ्रष्ट हमारे ... 
हमने 
कहा 
आर्थिक उदारीकरण मुर्दाबाद 
उसने कहा ...ज़िंदाबाद 
हमने पूछा क्यों ? 
उसने 
कहा 
आर्थिक उदारीकरण के रास्ते ही 
मेरी 
वैश्विक उधारीकरण की दुकान चल रही है... 
हमने 
कहा 
आततायियों का भूमण्डलीकरण मुर्दाबाद 
उसने कहा ....ज़िंदाबाद 
हमने 
पूछा क्यों ...? 
उसने 
कहा 
उसी भूमण्डल में,मैं सुरक्षित हूँ,वहीं मेरा रमणीय स्थल है ...
हमने 
कहा 
जनवादी लोकतंत्र जिंदाबाद 
उसने 
कहा 
सिर्फ़ 'मैं' 
और 
'मेरा' संसार ज़िंदाबाद,बाक़ी सब मुर्दाबाद ...


डॉ रमेश यादव
सहायक प्रोफ़ेसर
इग्नू, नई दिल्ली.


© 2013 आत्मबोध
1 Response
  1. प्रासंगिक, साधुवाद


एक टिप्पणी भेजें