प्रकाश के प्राप्त से निःसृत -
अमृत ही शब्द है,
वह अमर है कल्प कल्पान्तरों तक,
क्योंकि उसे अक्षरों ने बनाया है,
शब्द एक बीज है,
पड़ा रहेगा सदियों तक,भू गर्भ में,
पा , यथा समय अनुकूलन,
छतनार बन जायेगा.
शब्द ब्रह्म है,
नियामक है जगती का,
होता है वह वाणी का अमृत,
हे कलमकारों!,
वाणी की महत्ता को जानो,
शब्द में कभी मत सयुंक्त करना,
'
अप' उपसर्ग को...

युधिष्ठिर से...-
हे पांडव श्रेष्ठ!..धर्मराज,
हस्तिनापुर नरेशयुधिष्ठिर,
कृपया मेरा प्रणाम स्वीकार करें,
लेखक हूँ..कुछ सोचता रहता हूँ,
इस लिए आपके सम्बन्ध में ,
आप ही से कुछ प्रश्न करता हूँ,
आप थे शास्त्रों के ज्ञाता,,विद्वान्,
धर्मज्ञान रहने से धर्मराज कहलाते थे,
सबको धर्म का स्वरूप बतलाते थे,
क्या जुआ खेलना, प्रकारांतर से झूठ बोलना,
धर्म है?..या अपकर्म है?
अपनी पत्नी को ..
जिस पर चार भाईयों का समान अधिकार था,
आपने जुआ में दांव पर लगाया,
क्या आपने अपना धर्म निभाया?
अग्रज राजा होता है,
पर उसके अनुज कुंवर या कुमार होते थे,
वे राजा के बंधुए मजदूर नहीं होते,
चाहे वे जितनी शिष्टता दिखावें,
दुर्योधन और दुश्शासन ने ,
अपनी करनी का फल पाया,
पर आपने भी अपना सर्वस्व गंवाया,
क्या जुआ से पूर्व आपने माधव से पूछा था?
आया मन में आप से पूछ लूँ,
यदि कुतर्क समझें तो क्षमा प्रार्थी हूँ.
 

डॉ.बच्चन पाठक' सलिल '
पूर्व प्राध्यापक -रांची विश्वविद्यालय
बाबा कालोनी -पंचमुखी हनुमान मन्दिर ,आदित्यपुर -२
जमशेदपुर -१३ --झारखण्ड 
1 Response
  1. आपकी सर्वोत्तम रचना को हमने गुरुवार, ६ जून, २०१३ की हलचल - अनमोल वचन पर लिंक कर स्थान दिया है | आप भी आमंत्रित हैं | पधारें और वीरवार की हलचल का आनंद उठायें | हमारी हलचल की गरिमा बढ़ाएं | आभार


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