देश एक
चलन एक
रहन अनेक
वचन अनंत
गठन एक
संकल्प-छंद के बंद कई

नन्हें अँगुलियों ने फसलों की जगह बंदूकें रोपे थे
पंख लगा लिए अरमानों ने
कारंवा कर्बला की ओर चल दिये
कुछ न था हाथों में उत्साह के कारतूसें उग आयी
जोश ने धक्का दिया
सीने  में तोपें उभर आयी

जोश के रंग एक
अश्कों की बूँदें समान
जूनून के आग पलाश से मिलते
पंक्तियों में चरणबद्ध
उतावले-उतावले उतर गए पार
कोई लोभ नहीं
मोह की किरणें कोंसों दूर

दरिया से डर नहीं
दरिंदगी का खौफ नहीं
मुस्कुराते रहे

देखने वाली आँखें नम रहीं
हौसले कम न हुए
अचानक,अस्मा में तीन रंग लहरा उठे
धरा से धारण कर लिए सोंधी-सोंधी मिट्टी की अनमोल यादें
खुश्बू में नहाये लालों के ललाटें

करुणा के बारिश करते तारे गण
गाँव-गिरावं से दूर-दराज तक
फैले गये चर्चे
मौत को चूमने के अंदाज़ निराले

गगन ने बरसाए पुष्प जीवन की
धरती भर गयी हरियाली से
हम क्या सौप रहें ?
आने वाली नस्लों को

यक्ष प्रश्न लहराते हैं
कुछ तो करें
संचित-सिंचित रहे इंसानियत के लब्बोलुआब
शत-शत नमन मेरे देश के अमर जवान 


डा० सुनीता
सहायक प्रोफ़ेसर 
हंसराज कॉलेज, नई दिल्ली

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