आह सुनो उन  बेटियों की,
जिनकी चीखती हैं खामोशियाँ।
मत नकारो उन आवाजों को,
जिनमें  हैं दर्द की चिंगारियाँ।
सुलगने दो ये चिंगारी,
लग जाने दो आग।
अभी नही तो कभी नही,
हो पायेगा इन्साफ
बहुत हुई उन दरिंदों की दरिंदगी,
 हे वीरांगनाओं दिखादो अपनी बहादुरी।
चल नही पातीं जब दो कदम सुरक्षित,
क्या बन पाएंगी फिर ये अफसर बिटिया ?
कैसी जग ने रीत बनाई,
बेटी जिसमे हुई पराई।
कहे सबके लालच में,
बस इन्हें मिले है गम।
पूछती हैं ये नर्म निगाहें,
क्या है हमारे सवालों का जबाब ?
मरने के बाद हमें ही,
क्यों दी जाती है बदनामी की आग?
सोच बदलो- सोच बदलो,
कहता है हरपल हरकोई।
अपनी सोच तो देखो इनकी,
है जो बद्द से बद्द्तर।
बदलोगे जब अपनी सोच,
तभी तो बदलेगी सबकी।
इन आँखों में चैन नही,
आत्मा है भटक रहि।
जिस्म नही तो क्या,
रूह को ही दिल दो मुक्ति।
कह कृष्णा गीता में,
पड़ेगा जब जब पुण्य पर भारी  पाप,
आऊंगा मैं फिर धरती पर लेके नए अवतार।
न जाने वो कब आयेंगे,
बचाने करोड़ों द्रौपदी की लाज।
तब तक कैसे होंगे महफूज,
ये आँगन घर बार।
ओ कान्हा अब मत टालो
भावना की पुकार,
न्याय की मूर्ति धृत माना तुमको,
बंकि धृत संसार।
दो ऐसी शक्ति अब मुझे,
तोड़ जंजीर एक शुरुआत करूँ।
नयी सुबह की नयी किरण सी,
बनूँ  प्रेरणा सबकी।
मत मांगो भीख दया की बहनों,
और न करो इंतजार मदद का।
एक कदम साहस से बढाओ,
हैं कृष्णा हमारे साथ।
लो सीख लक्ष्मीबाई से,
मत होने दो और शर्मिंदा उसे।
गिर चुके हैं बूंद अनगिनत,
अमर आत्माओ की आँखों से।
उन आंसुओं की खा कसम,
लो संकल्प ढृढ़ हौसले से।
होगा न हमें दुश्मनों का भरम,
मिटायेंगे इस अन्धकार को हम।   




-भावना मिश्रा, मधेपुरा 
1 Response
  1. vir ras bhari kavya rachna pasand aai


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