सूरज हर रोज़ चला
आता...
घुटने के बल
कंधा टेकने...!!
बाजू की बुशट मोड़े...
पसीने की गोलियाँ
लट मे उलझाए...!!!
इतना क्यूँ जल रहा सबसे...
अजनबियों के शहर से
वास्ता क्या हैं तेरा...!!
एक दिन की ज़िंदगी...
अगले दिन की रात...!!
कौन याद रखेगा
तेरी तपिश...!!
लोग यहाँ
तेरी मजबूरी पर उपले रख...
रोटी सेंकते हैं...!!
कल ही
खाया नमकीन रोटी
हाँ तेरा अश्क की चुपड़ी हुई...!!
घुटने के बल
कंधा टेकने...!!
बाजू की बुशट मोड़े...
पसीने की गोलियाँ
लट मे उलझाए...!!!
इतना क्यूँ जल रहा सबसे...
अजनबियों के शहर से
वास्ता क्या हैं तेरा...!!
एक दिन की ज़िंदगी...
अगले दिन की रात...!!
कौन याद रखेगा
तेरी तपिश...!!
लोग यहाँ
तेरी मजबूरी पर उपले रख...
रोटी सेंकते हैं...!!
कल ही
खाया नमकीन रोटी
हाँ तेरा अश्क की चुपड़ी हुई...!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
शुक्रिया नीरज....!!!