मेरा जीना दूभर कर दिया है
माँ रेsssssssssssssss
............
मैं सो नहीं पाती
आखों के आगे आती है वह लड़की
जिसके चेहरे पर थी
एक दो दिन में माँ बनने की ख़ुशी
और लगातार होठों पर ये लफ्ज़ -
'कहीं बेटी ना हो ....!'
मैं कहती - क्या होगा बेटा हो या बेटी !!!
अंततः उसने बेरुखी से कहा -
आप तो कहेंगी ही
आपको बेटा जो है ....'
मेरी उसकी उम्र में बहुत फर्क नहीं था
पर मेरे होठों पर ममता भरी
मुस्कान उभरी - बुद्धू ...!!!
आज अपनी ज़िन्दगी जीकर
माओं की फूटती सिसकियों में
मैंने कन्या भ्रूण हत्या का मर्म जाना !
नहीं फर्क पड़ता शिक्षा से
कमाने से
लड़कियों के जन्म पर उपेक्षित स्वर
सुनने को मिलते ही हैं
उन्हें वंश मानना किसी को गवारा नहीं
वे असुरक्षित थीं - हैं ....
ससुराल में किसके क़दमों के
नीचे अंगारे होंगे
किसके क़दमों के नीचे फूल –
खुदा भी नहीं जानता
.... रात का अँधेरा हो
या भरी दोपहरी
कब लड़की गुमनामी के घुटने में सर छुपा लेगी
कोई नहीं जानता
नहीं छुपाया तो प्रताड़ित शब्द
रहने सहने के ऊपर तीखे व्यंग्य बाण
जीते जी मार ही देते हैं
तो गर्भ में ही कर देती है माँ उसे खत्म !!!
नहीं देना चाहती उसे खुद सी ज़िन्दगी
गुड़िया सी बेटी की ज़िन्दगी
खैरात की साँसें बन जाएँ - माँ नहीं चाहती
तो बुत बनी मान लेती है घरवालों की बात
या खुद निर्णय ले लेती है
.........
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ़ बोलने से क्या
होगा
कन्या रहेगी बेघर ही
या फिर करने लगेगी संहार
......
आन्दोलन करने से पहले
अपने विचारों में बदलाव लाओ
जो सम्भव नहीं -
तो खुद को विराम दो
और सुनो उन सिसकियों को
जिन्होंने इस जघन्य अपराध से
आगे की हर दुह्संभावनाओं के
मार्ग बंद कर दिए
सीता जन्म लेकर धरती में जाये
उससे पहले बेनाम कर दिया उन्हें गर्भ में ही
आओ आज मन से
उन माओं के आगे शीश झुकाएं
एक पल का मौन
उनके आँचल में रख जाएँ ... :(
रश्मि प्रभा, पटना
आन्दोलन करने से पहले
अपने विचारों में बदलाव लाओ
जो सम्भव नहीं -
तो खुद को विराम दो
और सुनो उन सिसकियों को
जिन्होंने इस जघन्य अपराध से
आगे की हर दुह्संभावनाओं के
मार्ग बंद कर दिए
शब्दश: सशक्त होती पंक्तियां एवं प्रेरक भाव
आभार इस प्रस्तुति का
सादर
मर्मस्पर्शी .....परिवर्तन का प्रभाव नहीं दीखता क्योंकि , हरेक को यह बदलाव लाने की आशा औरों से है ....