हिमालय ! तुम ही बतलाना,
सन पैंसठ की सच्ची बात ।
निपोर दिए थे अपनी बतीशी
पाक खाकर हमसे मात ।
ये दुष्ट गोरी के वंशज है,
क्षमा चौहान की क्या जाने ?
दगाबाज है कपटी कायर,
पाठ मित्रता का क्यूँ माने?
ले प्रेम -पत्र लाहौर गए हम
वह बैठा रहा लगाकर घात ।
हिमालय ! सचमुच बतलाना
सन पैंसठ की असली बात ।
युधिष्ठिर की धर्मनीति से ,
क्षमादान की युद्धनीति से ।
कुछ पंथ हमें बतलाना होगा ,
गांडीव गदा से सजना होगा ।
अर्जुन को कुरुक्षेत्र में लाकर,
पढ़ाना होगा गीता का पाठ ।
हिमालय ! ह्रदय खोल बताना,
सन पैसंठ की काली रात !!
तू खड़ा अहर्निश चेत रहा,
छद्मयुद्ध निनिर्मेष देख रहा ।
क्या दया-धर्म के ये अधिकारी ?
बख्शा शिशुपाल को कुंजबिहारी ?
ये दुम कुत्ते की ठीक न होगी ,
छोड़ो समझौता दो घूंसे-लात ।
हिमालय ! कील ठोक बताना,
सन पैंसठ की तूफानी रात ।
निपोर दिए थे अपनी बत्तीशी
निर्लज पाक, खाकर मात !!
हिमालय ! तुम ही बतलाना ,
सन पैंसठ की सच्ची बात ।


डॉ विश्वनाथ विवेका
कुलसचिव,
बी.एन.मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा.
0 Responses

एक टिप्पणी भेजें