हर पल हर लम्हा
खुद से ही लड़ रही
हूँ मैं...
सवाल जवाबो के इन
उलझनों में,
खुद के अन्दर चल
रहे.....
तूफानों से हर पल
बिखर रही हूँ मैं.......
बिखर रही हूँ मैं.......
एक तरफ मेरे साथ
मेरी भावनाओ की
गहराइयाँ है.....
इक तरफ मेरी
तन्हाईयाँ है,
मंजिल की तलाश
में
दर-दर भटक रही
हूँ मैं.....
किसी के इन्तजार
में
अंजान किसी आहट
पर,
सहम कर ठहर रही
हूँ मैं......
अपनी चाहतों, अपनी ख्वाइशों में,
अपनी चाहतों, अपनी ख्वाइशों में,
टूटने की हद तक
गुजर रही हूँ मैं.......
इक रौशनी की तलाश में कितने,
इक रौशनी की तलाश में कितने,
अंधेरो से घिर
रही हूँ मैं.....
इतनी तन्हा हो
गयी हूँ कि......
खुद को भी अनजान
सी लग रही हूँ मैं........!!!
सुषमा ‘आहुति’
कानपुर
सुषमा जी ,
आपकी ये रचना सच में काफी बेहतरीन हैं ,
ऐसा लग रहा हैं , की काफी कुछ कह रही हो....!
आपकी ही रचना ......!
दिल को छु ली आपकी ये रचना .....!!!