यूँ तो यहाँ हर शख्स मुझे,
अपना-अपना ही लगता है । 
लगते हैं जब ठोकर ..
तब आँख से पर्दा हटता है ......। 

मेरी हालत पर रोने का ..
कल तक जो दम भरते थे ..,
आज उन्हें हँसना मेरा ...
क्यों कांटा बनकर चुभता है । 

लोग  बदल जाएँगे ऐसे ..
ये न कभी सोचा था .........
इस तरह तो रंग कभी ..
गिरगिट भी नही बदलता है ..। 

कुछ अनुभव तो गम ने दिए थे
और दिए कुछ खुशियों ने,
कोई बात नही, मन मेरे ..
ये सब तो चलता रहता है ....। 

जब चल पड़ो मंजिल के पथ पर
तो रुको नही ..झुको नही,
मिहनत करनेवालों को ...
एक दिन मीठा फल मिलता है। 

यह सच है, बुराई बहुत है .....
मगर अच्छा बनना है हमे
यह सीख मिली है कमल से..
जो कीचड़ में रहकर खिलता है। 


 
रचना भारतीय, मधेपुरा
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