पुरुष
समाज का अर्थ है - एक सुरक्षा स्तम्भ
और स्त्री घर का आँगन यानि मर्यादा .
स्तम्भ ही वार कर जाये
तो आँगन के घबराये कदम बाहर निकल पड़ते हैं
बाहर - न घर,न समाज
एक जंगल होता है
जहाँ शेर खरगोश की लिबास में
मेमनों से समानुभूति का खेल खेलता है !
'महिला दिवस' स्वर्ण से बना पिंजड़ा है
जहाँ शेर लोमड़ी (घातक स्त्रियाँ) के साथ मिलकर
मेमनों के लिए जाल बिछाता है
........
आत्मशक्ति,सच से ऊपर
न कोई दिन है,न महीना, न वर्ष
अरे कोई सत्यनारायण भगवान् की पूजा है
जो पूरे विश्व में एक दिन के लिए
वादों का भोग लगता है !
खा जानेवाली नज़रों पर चश्मा चढ़ा
आवश्यकता से अधिक झुक जाने से
संस्कार तो नहीं बदलता न !
.....
सार्थक महिला दिवस मनाना ही है
और स्त्री घर का आँगन यानि मर्यादा .
स्तम्भ ही वार कर जाये
तो आँगन के घबराये कदम बाहर निकल पड़ते हैं
बाहर - न घर,न समाज
एक जंगल होता है
जहाँ शेर खरगोश की लिबास में
मेमनों से समानुभूति का खेल खेलता है !
'महिला दिवस' स्वर्ण से बना पिंजड़ा है
जहाँ शेर लोमड़ी (घातक स्त्रियाँ) के साथ मिलकर
मेमनों के लिए जाल बिछाता है
........
आत्मशक्ति,सच से ऊपर
न कोई दिन है,न महीना, न वर्ष
अरे कोई सत्यनारायण भगवान् की पूजा है
जो पूरे विश्व में एक दिन के लिए
वादों का भोग लगता है !
खा जानेवाली नज़रों पर चश्मा चढ़ा
आवश्यकता से अधिक झुक जाने से
संस्कार तो नहीं बदलता न !
.....
सार्थक महिला दिवस मनाना ही है
तो मैं आह्वान करती हूँ –
गंगा
की पवित्रता में अपने पाप मत घोलो,
क्षमा से बढ़कर कुछ नहीं
मन से क्षमा मांग गंगा को निर्बाध बहने दो
पापनाशिनी तुम्हें क्षमा करेगी -
पाप उसकी कलकल ध्वनि की रुनझुन में स्वतः धुल जायेंगे
सम्मान करो, सम्मान पाओ -
वसुधैव कुटुम्बकम दिवस रहने दो हर दिन को
हर दिन को खुशियों से भरपूर जियो
और मनाओ
क्षमा से बढ़कर कुछ नहीं
मन से क्षमा मांग गंगा को निर्बाध बहने दो
पापनाशिनी तुम्हें क्षमा करेगी -
पाप उसकी कलकल ध्वनि की रुनझुन में स्वतः धुल जायेंगे
सम्मान करो, सम्मान पाओ -
वसुधैव कुटुम्बकम दिवस रहने दो हर दिन को
हर दिन को खुशियों से भरपूर जियो
और मनाओ
रश्मि
प्रभा, पटना
purshon ko meraa sandesh
naari kee baat karne se pahle khud ko tatolo
sabse pahle ghar kee naariyon kee izzat karnaa seekho
बहुत सार्थक और सटीक सन्देश...बधाई
सार्थक सन्देश......
वास्तव में तभी मनया जायेगा एक सार्थक महिला दिवस ....बेहद सशक्त रचना !
एक दिन नारी दिवस मनाकर ही उपेक्षित किया जाता है ।ऐसा लगता है मनो संसार के रथ में एक पहिया निकल दिया हो ।
बिलकुल मेरे ही दिल की बात !
वसुधैव कुटुम्बकम दिवस रहने दो हर दिन को
हर दिन को खुशियों से भरपूर जियो
और मनाओ
सच में ऐसा ही होना चाहिए ......
शुभकामनाएं !!
"क्षमा से बढ़कर कुछ नहीं", इसके बाद अब कहने को कुछ खास रह ही नहीं जाता |
किसी विशेष समर्पण के लिए कोई एक दिन निश्चित करना ठीक है लेकिन उस भावना को समर्पित होने को उस विशेष दिन का इन्तजार करना नहीं |
स्त्री माँ सरस्वती से लेकर माँ काली तक हमेशा पूज्यनीय है |
सादर
महिला दिवस को सही अर्थों में बनाने के इस प्रयास को नमन, एक सार्थक सन्देश के लिए आभार !
'महिला दिवस' स्वर्ण से बना पिंजड़ा है
जहाँ शेर लोमड़ी (घातक स्त्रियाँ) के साथ मिलकर
मेमनों के लिए जाल बिछाता है......बहुत सही और सार्थक रचना
पुरुष समाज का अर्थ है - एक सुरक्षा स्तम्भ
और स्त्री घर का आँगन यानि मर्यादा .
स्तम्भ ही वार कर जाये
तो आँगन के घबराये कदम बाहर निकल पड़ते हैं
बाहर - न घर,न समाज
एक जंगल होता है
जहाँ शेर खरगोश की लिबास में
मेमनों से समानुभूति का खेल खेलता है.....कितना सही लिखा है ....!!!
पुरुष समाज का अर्थ है - एक सुरक्षा स्तम्भ
और स्त्री घर का आँगन यानि मर्यादा .
स्तम्भ ही वार कर जाये
तो आँगन के घबराये कदम बाहर निकल पड़ते हैं
बाहर - न घर,न समाज
एक जंगल होता है
जहाँ शेर खरगोश की लिबास में
मेमनों से समानुभूति का खेल खेलता है.....कितना सही लिखा है ....!!!
सम्मान करो, सम्मान पाओ -
वसुधैव कुटुम्बकम दिवस रहने दो हर दिन को
बेहद सशक्त आह्वान
इस सोच को और लेखनी को सादर नमन ...
सार्थक सन्देश
सही कहा आपने दीदी , लेकिन जब तक घातक जीव ( शेर लोमड़ी ) रहेंगे कमजोर जीव को सतायेंगे ही , कभी सहानुभूति देकर छलेंगे ,कभी वार कर |
अच्छा सन्देश सार्थक रचना
पुरुष प्रधान समाज पर प्रहार करती रचना
आत्मशक्ति,सच से ऊपर
न कोई दिन है,न महीना, न वर्ष
अरे कोई सत्यनारायण भगवान् की पूजा है
जो पूरे विश्व में एक दिन के लिए
वादों का भोग लगता है !
सशक्त प्रस्तुति रश्मिप्रभा जी ! आँखों पर सज्जनता का चश्मा चढ़ा लेने से संस्कार सच में नहीं बदलते ! घर के बाहर एक भयावह निर्मम जंगल है ! हर कदम फूंक-फूंक कर रखना ही होगा ! सार्थक सन्देश के साथ प्रेरक प्रस्तुति ! बधाई स्वीकारें !
सार्थक और पुरुष प्रधान समाज को सचेत करती रचना