जब से हूँ मैं तेरी होली,
खेली न तूने संग मेरे होली।
तड़प रही स्पर्श को तेरे,
बीत गये कई सावन मेरे ।।
हर होली पर बाट मैं देखूँ,
थाली में हूँ रंग सजाए ।
एक उम्मीद बनी है अब भी,
न जाने वो कब आ जाए।।
नहीं दूर तुमसे मेरी प्यारी,
क्यों बैठी हो लेकर थाली ।
सीमा की है जिम्मेदारी,
इसीलिए नहीं आया प्यारी ।।
तुमसे बड़ा है फर्ज देश का,
अच्छी लगेगी उस दिन होली।
दुश्मन के सीने में जिस दिन,
उतर जायगी एक-एक गोली।।
कवि आदेश अग्रवाल ‘प्रकाश’
ऋषिकेश (उत्तराखंड)
sarthak marmik anubhuti
आपको और आपके परिवार को
होली की रंग भरी शुभकामनायें
aagrah hai mere blog main bhi sammlit hon
aabhar
Bahut aachi kavita hai..