साल बदलते
है....
तारीखे बदलती है..
घड़ी की सुइयों की तरह,
तारीखे बदलती है..
घड़ी की सुइयों की तरह,
कुछ भी ठहरता नही
है.....
हर साल की तरह
दिवाली
आती है होली आती है,
आती है होली आती है,
न दीयों की रौशनी
ही ठहरती है...
न ही होली का कोई
रंग ही
चढ़ता है...मेरी जिन्दगी में...
चढ़ता है...मेरी जिन्दगी में...
हर बार ख्वाब
टूटते है उम्मीदे टूटती है....
हर बार सम्हलती
हूँ और.....
फिर टूट कर
बिखरती हूँ मैं....
हर बार ढूंढ़ कर
लाती हूँ खुद को,
और हर बार भीड़
में खो जाती हूँ...
खुद के ही सवालो
में उलझ कर रह जाती हूँ ......
सफ़र पर चलती हूँ सबके साथ,
सभी मुझसे आगे
निकल जाते है,
और मैं न जाने
किसके
इन्तजार में पीछे रह जाती हूँ......
इन्तजार में पीछे रह जाती हूँ......
डायरी के खाली पन्नो की तरह,
मैं भी खाली हो
चुकी हूँ....
न शब्द ही मिलते
है मुझे,
न ही अर्थ समझ
पाती हूँ.....अपने इस खालीपन का...
थक चुकी हूँ....
इन शब्दों से खुद
को बहलाते-बहलाते,
थक चुकी हूँ....
थक चुकी हूँ....
खुद को
समझाते-समझाते,
बस अब और नही....
बस अब और नही......
ठहर जाना चाहती
हूँ.....
बिखर जाना चाहती
हूँ,
आसमां में
सितारों की तरह....
मिल जाना चाहती
हूँ,
मिट्टी में खुसबू
की तरह....
बस अब और
नही.....अब ठहर जाना चाहती हूँ......!!!
thats fabulous one......