दुहाई हो महाराज यम दुहाई होSS.......
“कलयुग तुम!, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यम
लोक में आने की”
“महराज यम मुझे न्याय चाहिए, न्याय”
“तुम्हे न्याय की क्या आवश्कयता है
,खैर कहो तुम्हे कैसा न्याय चाहिए ?”
“महाराज यम, मुझे पहले एक वचन चाहिए जो
मेरे प्राण की रक्षा का बचन हो”
“आखिर क्यों ? तुम ऐसा क्या कहने जा रहे हो जिससे तुम्हारे प्राण संकट में पड़ा हो”
“नहीं महाराज पहले आप वचन दीजिए तब मैं कहूँगा”
“ठीक है मैं तुम्हे बचन देता हूँ
अब कहो”
इस दरवार में जितने भी गणमान्य थे सबकी नजर कलयुग पर टिकी थी .
“महाराज यम” कलयुग बोलना शुरू किया –“ महाराज मैं आप सबों की कृपा
से इस युग का राजा बना हूँ और जो मेरा स्वभाव है
उसके अनुरूप मैंने पृथ्वी पर चोरी डकैती
लूटमार रक्तपात बलात्कार लोभ लालच वैभिचार घृणा
तथा जितने प्रकार के अनैतिक कार्य है
वो सब हमारे आदेशानुसार मानव से करवाने में सफल
हुआ हूँ \ वैसे जानवरों पर हमारी पकड़ बहुत अच्छी है
\लेकिन मानवों पर पकड़ बनाने में असफल होता जा रहा
हूँ वो भी आपके दूतों के कारण”
“कलयुगSS” एक तेज आवाज गूंज गई उस कक्ष में \
“महाराज यम मुझे क्षमा करे परन्तु
सच्चाई यही है ,मुझे बोलने दे !”
“ठीक है कहो “
“आज हर वक्त कोई न कोई अनैतिक कार्य हो रहे है जिसमे कोई रोकटोक नहीं हो रही
है परन्तु इस घटना के कारण हमारी सत्ता हल्की
सी हिल गई थी परन्तु अपनी समझदारी से तथा अपने
समझदार भक्तों के द्वारा अपनी सत्ता को बचा लिया \ मैं खुश हूँ,
बहुत
खुश हूँ की मैंने मानव से मानवता धर्मं को
समाप्ति के कगार पद ला कर खड़ा कर दिया हूँ \जिसका उदाहरण आप पृथ्वी पड़
घटने वाली घटना – “आज मानव अपने आप को तथा अपने रिश्ते नाते,भाई-बहन माँ बाप को लगभग भूल चुके है / आज मानव खुद को जानता है
दूसरे की माँ बहन बेटी बहु को हबस का साधन मानता है,कही- कही मानव पड़ मैं इतना भारी पर
चूका हूँ की वो अपनी बहन बेटी और बहु के
रिश्ते को तार तार कर रहा है /आज बच्चा- बच्चा हमारा गुलाम है /
“मुख्य मुद्दे पर आओ कलयुग ये तो
तुम्हारा धर्म है”
“जी महाराज मैं उसी मुद्दे पर आ रहा हूँ /आज तक कितने राह् जनीत
बलात्कार लूटपाट खून-खराबा होते आ रहे है उसमें
हमारे भक्त सफल भी होते रहे है,लेकिन इस दिल्ली
वाले कांड में हमारे भक्त फँस चुके है वो भी आपके दूत के कारण /”
“वो कैसे कलयुग”
“महाराज यम मैं बिस्तार से तो नहीं बता
सकता लेकिन जो मुख्य बातें है वो मैं बयान करता
हूँ – आपके दूत की पहली गल्ती की इस घटना वाली रात आपके दूतों ने सोमरस का अत्यधिक
सेवन कर रहे थे “
“हाँ मैं जानता हूँ कलयुग “
जी महाराज यम आप तो सर्वज्ञानी है,हाँ तो मैं कह रहा
था /आपके दूतों की दूसरी गल्ती जहाँ
हमारे भक्त इस कर्म को अंजाम दे रहे थे तो आपके
दूत दूसरे मुल्क के मधुशाला में सोमरस
के साथ नर्तकी का नृत्य का आनंद ले रहे थे /हमारे कहने का
तात्पर्य यह है की महाराज यम की दो ढाई घंटे तक इस कर्म को अंजाम दिया जा रहा था तथा उस
मानव के सर पर लोहे की रोंड से मारा गया था जिससे उस मानव तथा स्त्री को मर जाना चाहिए था
लेकिन उन दोनों की मृत्यु नहीं हुई /
जबकि
आपके दूतों को आगाह भी किया था लेकिन नर्तकी तथा
सोमरस के लोभ में उन दूतों ने कहा की इस तरह की घटना तो हजारों घटी रहती है आज तक
कुछ हुआ क्या? और जहाँ तक उन दोनों की बातें है तो
उनकी मृत्यु सड़क पड़ होगी तथा यह
घटना भी अज्ञात हो जायेगी तुम जयादा परेशानी मत लो ये मेरा काम है और
मेरे काम में दखलअंदाजी हम बर्दास्त नहीं करेंगे
/और
महराज जिसका डर था वही हुआ घटना घट रही थी हमारे
भक्त उन दोनों को सड़क पड़ फेंक चुके थे लेकिन जब तक आपके दूत आये तब तक वे दोनों
बच गये/ फिर भी मैंने अपना धीरज नहीं खोया,मैंने आपके दूतों से कहा इन दोनों
का नंगा शरीर है और ठण्ड भी बहुत है और कम से कम
आधे एक घंटे तक तो कोई नहीं आयेगा देखेगा भी तो कोई कुछ नहीं करेगा इसलिए ठण्ड के कारण
इसकी मृत्यु तो होनी चाहिए, तो आपके दूतों ने कहा नहीं अब इसे नहीं मार सकता
वो मृत्यु का क्षण निकल चूका है अब कुछ नहीं हो सकता आगे भगवान की मर्जी / अब आप बताएं की
हमारे साथ नाइंसाफी हुई की नहीं आज हमारे भक्त
संकट में पड़े है ,खैर एक भक्त संकट
से निकल जायेगा क्योकि उसे नाबालिक माना
जायेगा लेकिन चार? खैर मैं हार नहीं मानूंगा ,महाराज यम मुझे इंसाफ दें “
“कलयुग, न्याय तो मैंने उसी वक्त कर दिया था
और उस दूत को सजा भी मिल चुकी है अब तुम्हे कैसी न्याय चहिये?”
“आप धन्य है महाराज यम आपकी न्याय
व्यबस्था से मैं धन्य हो गया,न्याय मांगने वाला बाद में आता है
न्याय पहले मिल जाती है आप महान हैं महाराज यम “
“वैसे कलयुग हमें पूछने का हक नहीं है क्योंकि ये साम्राज्य तुम्हारा है
फिर भी मैं पूछता हूँ आखिर तुम चाहते क्या हो
?”
“ मैं चाहता क्या हूँ ?
मेरा
नाम कलयुग है महाराज , मैं किसी को खुश देखना
नहीं चाहता हूँ मैं हर एक मानव को हैवान बनाना
चाहता हूँ जिससे समूची प्रकृति समाप्त हो
जाये तब मुझे शान्ति मिलेगी “
तभी उस दरवार में बैठे शख्स में से एक शख्स उठा और कुछ बोलना चाह रहा था महाराज यम की
नजर उन पर पड़ी –“हाँ चित्रगुप्त जी आप कुछ
बोलना चाह रहे है ?”
“जी महाराज मुझे भी एक प्रश्न का उत्तर
चहिये अगर आपका आदेश हो तो मैं कुछ कहूँ ?”
“हाँ चित्रगुप्त जी कहें मैं उत्तर दूँगा “
“मैं पूछना चाहता हूँ की न्याय के साथ
न्याय कैसे होनी चहिये ?”
“मैं समझ गया आपकी बात आप क्या कहलवाना चाहते है तो सुने न्याय के साथ न्याय
तभी संभव है जब न्यायकर्ता किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता किसी को छोटा बड़ा नहीं
मानता हो किसी के दबाव में नहीं आता हो ,आत्मा सभी का एक
सामान है चाहे वह नन्हा बच्चा हो या कोई बुजूर्ग सभी एक समान है और जहाँ तक इस दुष्कर्म
करने की बात आती है तो ,दुष्कर्म करने वाला कोई बच्चा ही
क्योँ न हो उसे सजा भी बराबर मिलनी चाहिये ..! (क्रमशः..)
-दीपक कुमार ‘मनीष’
मधेपुरा.
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