दिसम्बर की धूप में टैरेस पर इकट्ठा था
सारा खानदान बरसों बाद एक साथ
भाई की दोनों बेटियां आई थी
दो साल बाद आई थी बड़ी वाली इण्डिया
उसकी नन्ही तीन साल की बेटी के लिए
छोटे से शहर में बहुत सी चीज़े अनजानी थी
अचानक आश्चर्य से वो जोर से बोली ---
लुक मम्मा शी इस वाकिंग लाइक - cow ---
एक साथ हम सब पलट के देखने लगे
अरे ये तो तो नाउन चाची हैं
-धक्क सा हुआ दिल --अस्सी पच्चासी वर्ष की
नाउन चाची कितनी दुर्बल हो गई
सनई के सन से सफ़ेद बाल
कमर कमान हो गई --झुक गई
बिलकुल धनुष की भांति ---
आँख पर मोटा चश्मा --फिर भी धुंधला दीखता
पास आ कर हाथ पकड कर बैठ गईं
धीरे धीरे सहलाती रही हाथ
चेहरा हाथ से छू कर देखती रही
बिटिया -बहुत दिन बाद आई
उनके जाने के बाद भाभी बोली
आज भी यह घर घर जा कर काम करती है
बूढ़े कांपते हाथों से बरतन मांजती है
जूठे बरतन धुलने पर कर्कश आवाज़ भी सुनती हैं
पता चला इनकी बेटी दामाद की मृत्यु हो गई और
उसके एक बेटे और दो बेटियों को
इन्ही बूढ़े हाथों ने पाला एक लड़की की शादी की
जिस दूसरी लड़की की शादी की
चिंता इन्हें खाए जा रही है वो इन्हें मारती है
गालियाँ देती है पैसा छीन लेती है --
खून उबल गया मेरा गुस्से से --सोचा कुछ करूँ
दुसरे दिन सुबह होते ही नाउन चाची फिर हाज़िर
नाउन चाची काहे अब इतना भाग दौड़ करती है आप
चलो मेरे साथ लखनऊ बस बैठ कर देखना --
अपनी आंसू भरी आँखों और रुंधी आवाज़ में बोली
बिटिया एक नतनी अउर रही गय बियाह का
उका बियाह देई ---चाची तुमको मारती है वो
बोलो हम चले तुम्हारे घर अभी बताते है उसे
जाय दो बिटिया --लरिका है --
फिर छुपा कर रखी थैली दिखाई उसमे पैसे रख के
बोली अब हम चोराय के रखित है --
जितने दिन भी रहे वो रोज़ आती थी
हमने भाभी से कहा इनसे काम मत करवाना कभी
मुश्किल यह थी बिना कोई काम किये वह
महीने के पैसे भी लेने को तैयार नहीं होती है
तय हुआ उनकी संतुष्टि के लिए बैठ कर
साग तोडना धनिया पत्ती तोड़ दे बस
चाची अपनी जिंदगी भर यहाँ आना नहीं छोड़ पायेंगी
हम भी उन्हें कैसे छोड़े ----- और  फिर
भतीजियों की नन्ही बेटियां के सवालों पर
हम उन्हे बताते रहे यह नानी है ---पता है तुम्हे
झुकी कमर वाली सन से बालों वाली बूढी नानी
जो चंदा मामा पर चरखा चलाती दिखती हैं --
तुम्हे देख कर दिन में तुमसे मिलने आती है
रोज़ रात चंदामामा के साथ तुम्हे प्यार से देखती है
ऊपर आसमान से ---ऐसी है हमारी नाउन चाची
उनका नाम सोना है सचमुच प्योर गोल्ड है वह

 
-दिव्या शुक्ला, लखनऊ
0 Responses

एक टिप्पणी भेजें